बात ये है कि

Monday, March 26, 2012

दूर रहने वाले बच्चों के माँ बाप का घर किसी ओल्ड एज होम सा ही लगता है !!!!!!!

बूढ़े माँ-पिता को छोड़ कर दूसरे शहरों में रहने वाले नौजवान कभी कभार मिल आया करते हैं अपने माता- पिता से इस तरह की उनको यूँ न लगे की उनको देखने वाला कोई नहीं....पर सच तो ये है की सच में उनको देखने वाला कोई नहीं..... शहरों में अच्छा कमा कर, अपनी पत्नी के साथ अपने बच्चों के भविष्य के सपने देखते इन युवाओं के पास अपने माता पिता के लिए कोई स्वप्न नहीं होता.....उनको अपने साथ ला कर रखने में गृह कलह का डर बना रहता है .......

वृद्ध का जीवन वृद्ध ही जानते हैं....कैसे हर एक चीज़ के लिए उन्हें दस बार सोचना पड़ता है....उनके हर काम हर इच्छा में शामिल रहते हैं उनके बच्चे....और बच्चों के हर काम हर इच्छा में शामिल होते हैं उनके भविष्य के सपने.... इस तरह की व्यवस्था में औरतों की भी बड़ी भूमिका है...सहनशक्ति की कमी पुरुषों में तो हमेशा से ही रही थी पर स्त्रियों में भी आधुनिक समय में बड़ी कमी आई है ....स्वयं केंद्रित उनकी सोच के कारण ही उनके परिवार की परिभाषा में सिर्फ़ पति और बच्चे ही रह गए है....माता पिता के साथ रहने का अर्थ है ''जोइंट फैमिली'' में रहना.

जो संतान अपने माता पिता के दुःख- दर्द, हारी- बीमारी, का हाल चाल फोन पर लेकर समझते हैं की उन्होंने अपना कर्त्तव्य पूरा किया उनको मेरे कुछ भी कहने से क्या समझ आने वाला है.... बिना बच्चों के माँ बाप का घर किसी ओल्ड एज होम सा ही लगता है जहाँ कभी कभार उनसे मिलने कोई आ जाता है और कभी कभी तो वो भी नहीं हो पाता..इसमें एक कारण यह भी है की अच्छी नौकरियां और अवसर वहाँ नहीं है जहाँ आप रहते हैं....नौकरी करने तो आपको बाहर ही जाना होगा उसके बिना भी गुज़ारा नहीं, साथ ही माँ- बाप, अपनी जगह को छोड़ने में असहजता महसूस करते हैं .....एकल परिवारों की संकल्पना यही से शुरू होती है. हालात ये हैं की इन परिवारों में भी औरतें हक़ के नाम पर और पुरुष अपेक्षाओं के नाम पर परिवार का सुख नहीं जी पाते....जबकि हम सब जानते और समझते हैं की जीवन जीने का सुख अकेलेपन में नहीं अपनों के साथ दिन,खुशी,त्यौहार,अवसाद साझा करने में ही है तब भी हमारी कोशिशों में कमी क्यूँ है...क्यूँ दूर रह रहे माँ-पिता के लिए हम कभी नहीं सोचते ...क्यूँ कोई त्यौहार,कोई छुट्टी सिर्फ़ उनके नाम नहीं करते ........माना की बाहर रहना हमारी मौजूदा अर्थव्यवस्था,सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है पर सहनशक्ति, जुड़ाव तो हमारे वश में है...जिसे देकर ,अपनाकर हम खुद को और अपनों को दे सकते हैं सुनहरा जीवन .......

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